भरे बाजार से अक्सर ख़ाली हाथ ही लौट आता हूँ,
पहले पैसे नहीं थे अब ख्वाहिशें नहीं रहीं।

उत्साहवर्धन के लिए शायरी
रोज रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़ा हूँ,
ऐ मुश्किलों! देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूँ।
जरुरी नहीं की हर समय लबों पर खुदा का नाम आये,
ताउम्र बस एक ही सबक याद रखिये,
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